Thursday, September 19, 2024
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ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कनफेडरेशन के 38वें स्थापना दिवस पर बैंको के निजीकरण पर गरजे विकास उपाध्याय

ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कनफेडरेशन और विधायक विकास उपाध्याय ने बैंको के निजीकरण का विरोध मे “बैंक बचाओ, देश बचाओ” का दिया नारा………..

आज ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कनफेडरेशन का 38 वां स्थापना दिवस मनाया गया। इस ख़ास मौके पर विधायक विकास उपाध्याय के द्वारा संगठन के लोगो के साथ फ्लैग होस्टिंग किया गया।

वर्तमान की केंद्र सरकार द्वारा जिस प्रकार राष्ट्रीयकृत बैंको का निजीकरण किया जा रहा है उसका विरोध आज ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कनफेडरेशन के 38वें स्थापना दिवस के मौके पर संगठन के सभी लोगो ने ‘बैंक बचाओ, देश बचाओ’ का संकल्प लेकर किया।संगठन ने विरोध करते हुए बताया कि आज़ाद भारत के हर नागरिकों को बैंक सेवा का लाभ दिलाने के उद्देश्य से पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने 19 जुलाई 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था।भारत देश के लोगों को साहूकारों के चंगुल से निकालने और सभी को बैंकिंग सुविधा देने के उद्देश्य से भारतीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। आज बैंको के निजीकरण होने से देश की आर्थिक स्वतंत्रता को भारी क्षति पहुँचेगी।

 

विधायक विधायक उपाध्याय ने स्थापना दिवस के मौके पर बैंको के निजीकरण से देश को होने वाली हानि के बारे मे बताते हुये कहा कि श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने 19 जुलाई 1969 को देश के लोगो को आर्थिक स्वतंत्रता देने के उद्देश्य से बैंको के राष्ट्रीयकरण का कदम उठाया था।भारत देश के लोगों को साहूकारों के चंगुल से निकालने और सभी को बैंकिंग सुविधा देने के उद्देश्य से भारतीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था।क्योंकि इससे पहले निजी बैंक नियमित रूप से दिवालिया हो जाता था और लोगों को अपनी मेहनत की कमाई गवानी पड़ती थी। श्रीमति इंदिरा गाँधी जी के इस दूरदर्शी कदम से बैंक राष्ट्रीयकरण के 5/6 वर्षो बाद से ही हमारा देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होने लगा और हरित क्रांति, श्वेत क्रांति,नीली क्रांति संभव हुई और तब से राष्ट्रीयकृत बैंक ‘राष्ट्र विकास’ का हिस्सा बन गया।राष्ट्रीय कृत बैंक ने हमेशा कुशलता से महत्वपूर्ण योगदान देते हुए सरकार द्वारा प्रायोजित सभी योजनाओं को सफल बनाते हुए, देश को अविकसित से मजबूत विकासशील अर्थव्यवस्था में ले गया। देश अब राष्ट्र विकास का हिस्सा बने राष्ट्रीयकृत बैंक के बिना 1 इंच भी आगे नहीं बढ़ सकता। भयानक कोरोनावायरस काल के दौरान राष्ट्रीयकृत बैंकों ने फिर से साबित कर दिया कि यह राष्ट्रीय कृत बैंक निर्भॉर भारत है। राष्ट्रीयकृत बैंकों का निजीकरण भारत देश को फिर से अविकसित भारत की ओर ले जायेगा।निजी करण से ग्रामीण शाखाएं बंद हो जाएंगी और बैंक पहले की तरह शहरोंन्मुखी होंगे। ब्याज के मूल्य निर्धारण में एकाधिकार होगा। आम जनता वरिष्ठ नागरिक, पेंशन भोगियों को कम ब्याज मिलेगा। सर्विस चार्ज बढ़ेगा। देश की रीढ़ किसानो को ब्याज की रियायत दर उपलब्ध नहीं होगी। सीमांत और छोटे किसान, छोटे व्यवसाई, बेरोजगार युवा, महिला स्वयं सहायता समूहों को गंभीर समस्या का सामना करना पड़ेगा। छोटे और मध्यम आकार के उद्यमियों/व्यवसायियों को प्राथमिकता के आधार पर ऋण नहीं मिलेगा। विद्यार्थियों को शिक्षा ऋण मिलना मुश्किल होगा। बड़े-बड़े पूंजी पतियों को ज्यादा कर्जा देना और ना चुकाने पर बट्टे खाते में डालना जो वर्तमान में चल रहा है। ग्राहक सेवा खराब होगी क्योंकि ओवरलैपिंग शाखाएं बंद हो जाएंगी। बैंकों के निजीकरण से हमारे एससी/एसटी एवं पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए संविधान द्वारा निर्धारित आरक्षण समाप्त हो जाएगा। बहुत से युवा, शिक्षित बेरोजगार होंगे और बेरोज़गारी की दर बढ़ेगी और महत्वपूर्ण बात यह है कि बैंकों में जमा पूंजी सुरक्षित नहीं रहेगी क्योंकि सरकार द्वारा दी गई गारंटी समाप्त हो जाएगी। देश के कमजोर और गरीब परिवार को दी जा रही सभी सरकारी स्कीम हो जाएगी जिसका लाभ कमजोर और गरीब तबके को लोगों को नहीं मिल पाएगा, और इससे देश की आर्थिक स्वतंत्रता कमजोर होगी।

विकास उपाध्याय ने केंद्र सरकार के बैंको के निजीकरण की नीति को गलत बताते हुये कहा कि इसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ हम दो हमारे दो की नीति को बढ़ाते हुये, बड़े पूँजीपतियों को लाभ पहुँचाने के लिए किया जा रहा है जिनके लाखो-करोड़ों रूपये के क़र्ज़ को इनके इशारे पर माफ़ किया जा रहा है।

इसलिए आज हम सभी को मिलकर ‘बैंक बचाओ, देश बचाओ’ का नारा देकर केंद्र सरकार की इस गलत नीति का विरोध करना है और देश को अविकसित होने से बचाना है

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