Friday, November 22, 2024
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कांग्रेस की बदनीयती और लापरवाही से जनजाति समाज का आरक्षण छीना:भाजपा

*जनजाति समाज के हक की लड़ाई के लिए हर लड़ाई लड़ेंगे: अरूण साव*

 

रायपुर। छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद अरुण साव ने भाजपा कार्यालय एकात्म परिसर में आयोजित पत्रकार वार्ता में कहा कि कांग्रेस

सरकार ने प्रदेश के जनजाति समाज के साथ एक बड़ा धोखा किया है जनजाति आरक्षण कटौती के लिए कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराते उन्होंने कहा कि भाजपा की सरकार ने एकमुश्त 12 फीसदी आदिवासी आरक्षण बढ़ाया और सत्ता में रहते इस व्यवस्था का रक्षण करते हुए आदिवासी समाज का हित संरक्षण किया। कांग्रेस की सरकार ने सुनियोजित षड्यंत्र के तहत आदिवासी हितों पर कुठाराघात किया है। जिसके लिए जनजाति समाज उसे कभी माफ नहीं करेगा।

 

लापरवाही 2019 से शुरु हुई सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में हाई कोर्ट को निर्देश दिया था कि तीन माह में अंतिम सुनवाई हो लेकिन कांग्रेस सरकार साढ़े तीन साल तक सुनवाई से भागती रही तारीख पर तारीख लेती रही जब कोर्ट ने तारीख बढ़ाने से मना कर दिया तो अंतिम सुनवाई में नए दस्तावेज पेश करने की अनुमति मांगी सरकार इस मामले में गंभीर नहीं थी और जानबूझकर आदिवासियों के आरक्षण के खिलाफ फैसला दिलवाया गया।

 

इसी प्रकार वर्ष 2012 में माननीय राज्यपाल के आदेश से प्रदेश के पांचवे अनुसूची क्षेत्र के जिलो में तृतीय एवम चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों की भर्ती में स्थानीय जनसंख्या के अनुसार आरक्षण की व्यवस्था की गई थी यह व्यवस्था भी 29 सितंबर 2022 को कांग्रेस के कार्यकाल में माननीय उच्च न्यायालय ने खारिश कर दी इस निर्णय का भी मुख्य कारण प्रदेश सरकार की घोर लापरवाही रही।

 

इसी बीच राज्य सरकार ने सहायक शिक्षकों की 14500 पदों की भर्ती का विज्ञापन जारी कर दिया इसी लापरवाही के कारण 28 जनहित याचिका माननीय उच्च यायालय में दायर हुई और इससे प्रदेश के लाखों जनजातीय युवाओं को नुकसान उठाना पड़ेगा।

 

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री साव ने कहा कि राज्य में आखिर क्यों आरक्षण को लेकर आदिवासी युवाओं को सड़क पर उतरना पड़ रहा है? कांग्रेस सरकार ने वनवासी समाज के साथ विश्वासघात किया है और अपने पाप पर परदा डालने के लिए झूठ फरेब की राजनीति कर रही है। आदिवासी समाज इनकी चाल और इनके दोहरे चरित्र को समझ चुका है।

 

0 भाजपा सरकार ने 1994 के आरक्षण अधिनियम को संशोधित करते हुए 18 जनवरी 2012 को अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को 20% से बढ़ाकर 32% किया गया था, इसके साथ ही पांचवी अनुसूचित जनजाति क्षेत्र के तृतीय और चतुर्थ वर्ग की शासकीय नौकरियों में क्षेत्रीय युवाओं को प्राथमिकता प्रदान करने के लिए भी पहल की, जिसे माननीय राज्यपाल की स्वीकृति प्राप्त हुई लेकिन आदिवासियों के इस विकास के विरोध में पूर्व सांसद पीआर खूंटे और कांग्रेस की तत्कालीन विधायक पदमा मनहर ने माननीय उच्च न्यायालय में इस विधेयक के विरुद्ध याचिका दायर की। जिस पर आदिवासियों के विकास और अधिकारों के लिए भाजपा ने लड़ाई लड़ी। एक ओर भारतीय जनता पार्टी शासित छत्तीसगढ़ सरकार माननीय उच्च न्यायालय में जनजाति समाज की ओर से मजबूती से अपना पक्ष रखकर 6 वर्षों तक लड़ती रही, 2018 तक यह कानून चलता रहा और हर वर्ष आरक्षण के लाभ के साथ ही पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में तृतीय और चतुर्थ वर्ग की शासकीय नौकरियों में आदिवासियों को प्राथमिकता भी मिलती रही, परन्तु भूपेश बघेल की सरकार ने 29 सितंबर को एक आदेश निकालकर बस्तर, सरगुजा और बिलासपुर संभाग के अनुसूचित जिलों से स्थानीय भर्ती का नियम खत्म कर दिया।

 

0 इस फैसले के विरोध में माननीय उच्च न्यायालय में जनहित याचिकाएं दायर की गई, इन याचिकाओं पर कांग्रेस ने अपना पक्ष मजबूती से नहीं रखा।बल्कि साधारण वकीलों और खोखली दलीलों के साथ इस मामले को उच्च न्यायालय में लड़ा गया।

 

0 कांग्रेस सरकार चहेते अफसरों के लिए सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकीलों को खड़ा करती है लेकिन जनजाति समाज के लिए नहीं। जिसके कारण माननीय उच्च न्यायालय में याचिका कर्ताओं के पक्ष में फैसला आया और वनवासियों के आरक्षण को कम कर दिया गया। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील तक नहीं की है। कांग्रेस की सरकार का असली चेहरा जगजाहिर हो गया है। संपूर्ण जनजाति समुदाय आक्रोश में है। भाजपा उनके साथ उनकी लड़ाई लड़ेगी।

 

हमारी मांग है जिन भी अधिकारियों ने लापरवाही की है उनके ऊपर तुरंत कार्रवाई की जाए और आदिवासियों को उनके हक 32 प्रतिशत आरक्षण जो कांग्रेस सरकार की घोर लापरवाही की वजह से छीन लिया गया है उन्हें जल्द से जल्द वापिस मिलना सुनिश्चित किया जाए।

 

प्रेस वार्ता में नेता प्रतिपक्ष श्री नारायण चंदेल,भाजपा के वरिष्ठ नेता विक्रम उसेंडी, श्री राम विचार नेताम, केदार कश्यप, महेश गागड़ा ,सांसद गोमती साय, प्रदेश प्रवक्ता देवलाल ठाकुर,जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष विकास मरकाम माजूद रहे।

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