यदि अस्तित्व समझ में आ गया तो कभी आंख से आंसू नहीं गिरेंगे : आचार्यश्री विशुद्ध सागर महाराज
रायपुर। सन्मति नगर फाफाडीह स्थित विशुद्ध देशना मंडप में गुरुवार से तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ। प्रथम दिन दोनों सत्रों में आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज रचित वस्तुत्व महाकाव्य पर आगम के जाने-माने विद्वानों ने अपने आलेखों का वाचन किया। विशुद्ध वर्षा योग समिति ने संगोष्ठी में शामिल रायपुर पधारे सारे विद्वानों का सम्मान किया। दोनों सत्रों के पश्चात आचार्यश्री ने अपनी मंगल देशना दी एवं विद्वानों को आवश्यक दिशा निर्देश प्रदान किए। विदित हो कि वस्तुत्व महाकाव्य पर 18 एवं 19 अक्टुबर को दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय श्रमण संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इसमें श्रमण मुनिराजों और ब्रह्मचारी भैय्या जी ने अपने-अपने विषयों पर आलेख का वाचन कर महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने अपनी मंगल देशना में कहा कि अस्तित्व का ज्ञान होना चाहिए,6 द्रव्य का अस्तित्व है। अस्तित्व कह रहा है कि हम हैं इसलिए वस्तुत्व है। 10 सामान्य गुण विद्वानों के पास होने चाहिए, यदि अस्तित्व समझ में आ गया तो कभी आंख से आंसू नहीं गिरेंगे। 6 द्रव्य सत हैं, एक भी द्रव्य वृद्धि को,हानि को प्राप्त नहीं होगा। ये त्रैकालिक थे,त्रैकालिक हैं और त्रैकालिक रहेंगे। यदि पर्याय छूटती है तो वियोग आत्मा का नहीं होगा,जीव का होगा।
आचार्यश्री ने कहा कि अहिंसा अणुव्रत, महाव्रत का जो पालन होता है वह जीवों की हिंसा न हो जाए इस भावना के साथ किया जाता है।
उपचरित असद्भूत व्यवहार नय कोई यदि नहीं स्वीकार किया तो अहिंसा महाव्रत का पालन नहीं होगा। विद्वान लोग कुछ कह नहीं रहे,सब सुनते चले जा रहे हो,विद्वानों समझिए। वस्तुत्व को समझने के लिए बहुत गहरी आंख खोलनी पड़ेगी, समयसार को समझने के लिए बहुत गहरे में जाना पड़ेगा। मैं जीव हूं यह सत्य नहीं है, यह उपचरित असद्भूत व्यवहार नय का विषय नहीं है, मैं आत्मन हूं। जो 10 प्राणों से जीता है, उसे जीव कहा गया है। 10 प्राण पौद्गलिक है,ये आत्मिक नहीं है। ये उपचरित असद्भूत व्यवहार नय है।
आचार्यश्री ने कहा कि द्रव्य के अंदर 10 सामान्य गुण हैं, ऐसा विश्व में कोई पदार्थ नहीं है जो 10 गुण के बाहर हैं। जो 6 द्रव्य है इन 10 गुण के भीतर है। जीव का अस्तित्व है, पुद्गल का अस्तित्व है,धर्म का अस्तित्व है,ऐसे ही अधर्म का, आकाश का और काल का अस्तित्व है। यदि अस्तित्व गुण को जो विद्वानों ने आलेख का वाचन किया,अपनी दृष्टि से किसी ने कम नहीं वाचा है। मेरा हृदय कह रहा है कि जो भी जीवन है,वस्तुत्व की रचना यथार्थ में पढ़ने के लिए नहीं की गई है,रमने के लिए नहीं की गई है,ये 10 सामान्य गुणों से इसका प्रारंभ हुआ है।
*आचार्यश्री रचित वस्तुत्व महाकाव्य पर तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी का शुभारंभ*
आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ सानिध्य में 20 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक अंतर्राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी का आयोजन होगा। इसका शुभारंभ गुरुवार 20 अक्टूबर से हुआ। संगोष्ठी में आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज के रचित वस्तुत्व महाकाव्य पर विद्वान अपने आलेखों का वाचन करेंगे। प्रथम दिन गुरुवार को दो सत्रों में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य संयोजक डॉ जयकुमार जैन एवं स्थानीय संयोजक इंजीनियर दिनेश जैन हैं। प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर फूलचंद प्रेमी वाराणसी ने की। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता ब्रह्मचारी डॉ. अनिल जैन ने की। विद्वानों ने वस्तुत्व महाकाव्य को और अधिक सर्वश्रेष्ठ बनाने अपने-अपने विषयों पर आलेख प्रस्तुत किए।
डॉ.जय कुमार जैन ने कहा कि वस्तुत्व महाकाव्य अभी अप्रकाशित है,विद्वानों के जो भी अभिमत आ रहे हैं वह एकमत से सहमत हैं कि यह जैन संस्कृति का दुनिया का अनूठा महाकाव्य है। भविष्य में जब ऐतिहासिक मूल्यांकन महाकाव्यों का किया जाएगा तो श्रमण संस्कृति के महाकाव्यों की परंपरा में वस्तुत्व महाकाव्य का प्रथम स्थान आएगा। हमारे मुनिराजों ने नया चिंतन दिया, सुंदर-सुंदर अपने विचार रखें, खूब परायण किया और निष्कर्ष दिए। निष्कर्ष के रूप में यह निकल कर आया कि वस्तुत्व महाकाव्य है क्या और भविष्य मैं इसका कैसा मूल्यांकन किया जाना चाहिए ?
विशुद्ध वर्षा योग समिति ने विद्वानों का किया सम्मान
विशुद्ध वर्षा योग समिति ने अंतर्राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी के लिए पधारे विद्वानों का सम्मान किया। इनमें वकील अनूपचंद जी फिरोजाबाद,पंडित वीरेंद्र कुमार जी टीकमगढ़,प्रोफेसर डॉक्टर फूलचंद जी प्रेमी वाराणसी,पंडित महावीर जी औरंगाबाद, जय कुमार जी दुर्ग, पंडित विजय कुमार जी कारीटोरम, पंडित अक्षय जैन मुंबई,डॉक्टर अनिल कुमार जैन प्राचार्य सांगानेर, डॉक्टर देव कुमार रायपुर,पंडित ऋषभ कुमार जी नवापारा राजिम,आ पंडित सुनील जी भिलाई,राहुल जी- दीपक जी मुंबई, कैलाश रारा जी रायपुर, जिनेंद्र जैन कृति उज्जैन और पंडित शिखर चंद जी दुर्ग शामिल रहे। सम्मान के पश्चात दोनों सत्रों में विद्वानों क्रमशः डॉ.जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर,डॉ.फूलचंद जी प्रेमी वाराणसी,पं.अनिल कुमार जी जयपुर,पं.वीरेंद्र कुमार टीकमगढ़,
पं.ऋषभ जैन राजिम,पं. सचिन जैन टीकमगढ़,पं.अनूप चंद फिरोजाबाद,पं.पवन दीवान सागर और दिनेश जैन भिलाई ने अपने विचार रखें,अपने-अपने विषयों पर आलेखों का वाचन किया। संगोष्ठी के संचालकों ने आलेखों का समीक्षण किया।