Friday, November 22, 2024
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*यूनिपोल-घोटाला/षडयंत्र/या महापौर की साजिश ?*

शहर में लगे यूनीपोल मामले में पत्रकार वार्ता लेकर नगर निगम नेता प्रतिपक्ष मीनल चौबे ने आरोप लगाया कि महापौर ने 27 करोड़ रू के घोटाले का आरोप संबंधित एंजेंसी पर लगाया है। उपरोक्त गड़बड़ी पर लंबे समय तक महापौर की चुप्पी उन्हें संदेह के दायरे में ला रही है। महापौर स्वयं मान रहें हैं कि निगम के अधिकारी भ्रष्ट है और वे पूरे प्रमाण के साथ आरोप लगा रहे होंगे। तो वे इस विषय में जांच समिति की नौटंकी छोड़कर सीधे तथ्यों के साथ संबंधित अधिकारियों के खिलाफ एफ.आई.आर. क्यों नही करवा रहें हैं।उन्होंने कहा महापौर स्वयं घोटाला किंग है। डिवाइडर घोटाला/बुढ़ातालाब फौव्हारा घोटाला/राऊतपूरा फेस टू घोटाला में महापौर मौन है। हमें संदेह है कि ई.डी.की कार्यवाही से घबरा कर 2000 करोड रू के शराब घोटाले में संभावित संलिप्तता से जनता का ध्यान भटकाने की चाह में यह जांच का दिखावा कर रहे हैं।

महापौर संदेह के दायरे में इसलिए भी आ रहे है कि स्मार्ट टायलेट और ए.सी.बस स्टाप बनाने के एवज में विज्ञापन एजेंसियों को यूनिपोल की अनुमति निर्धारित शुल्क के साथ दी गयी थी। दोनो ही विषयों में आयुक्त ने अपने विशेषाधिकार का उपयोग किया है पर महापौर एक विषय में आयुक्त को बरी कर रहे है और दूसरे विषय में आयुक्त पर आरोप लगा रहें हैं जबकि दोनो ही विषयों की फाईल लगभग एक जैसे है। अंतर सिर्फ विज्ञापन एजेन्सी का है।

उन्होंने कहा जब कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था तब पूरे शहर भर में सभी यूनीपोलों में महापौर की ओर से स्वागत का विज्ञापन लगाया गया था। तब ये बोर्ड अवैध नही थे।

उन्होंने कहा हम कुछ बिन्दू आप के सामने रख रहे है जो महापौर को संदेह के दायरे में ला रहे है:-

 

1. यूनिपोल कोई ऐसी वस्तु नही है जो छिपा कर लगाया जाये। महापौर की चुप्पी इतने दिनों तक क्यों रही ?

 

2. महापौर ने बहुत लंबे समय तक यूनिपोल से संबंधित फाईल अपने पास क्यों रखी।

 

3. 2019 की निविदा में महापौर को अभी याद आ रहा है कि विषय को एम.आई.सी. में क्यों नही रखा गया।

 

4. संबंधित एंजेंसी का दावा है कि जितना यूनिपोल का साईज बढ़ाया गया है उसी अनुपात में रेवेन्यू भी दिया गया है। महापौर इस विषय में क्यों कुछ नही बोल रहें हैं।

 

5. बसें नही फिर भी यूनिपोल लगाने के लिए बस स्टाप बना। महापौर मौन क्यों रहे।

 

6. महापौर ने जांच कमेटी बनायी। क्या अपर आयुक्त, आयुक्त एवं जिलाधीश के कार्यो की जांच कर सकेंगे ?

 

हम ये कह रहे है कि महापौर, एक विज्ञापन कंपनी पर 27 करोड की गड़बड़ी का आरोप लगा रहे है तो यह इनकी सहमति और स्वीकृति के बिना संभव नही है। और लगभग तीन साल बाद कोई बात नही बनी होगी तो वे आरोप/प्रत्यारोप की राजनीति कर रहें है।

वास्तव में 2000 रू के शराब घोटोले में महापौर जी संदेह के दायरे में है। लगातार ई.डी. उनसे पूछताछ कर रही है। हास्यापद है कि वे ई.डी. को पत्र लिख रहे है कि उनसे जल्दी पूछताछ कर ले।

इस घटनाक्रम से नगर निगम रायपुर की छवि खराब हो रही है इसलिए महापौर जी को इस्तीफा दे कर अपना सारा ध्यान ई.डी. का सहयोग करने में लगाना चाहिए।

पत्रकार वार्ता में पूर्व नेता प्रतिपक्ष सूर्यकांत राठौर, मनोज वर्मा,मृत्युंजय दूबे,प्रमोद साहू जी उपस्थित थे।

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