रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल ने शिक्षा व्यवस्था में गुणात्मक सुधार और बुनियादी सुविधाएँ मुहैया कराने के प्रदेश की कांग्रेस सरकार के दावे को फर्जी बताया है।
चंदेल ने कहा कि प्रदेश सरकार के नाकारापन के चलते बिलासपुर जिले में एक ओर जहाँ कुछ विद्यालयों में स्वीकृत सेट-अप से अधिक शिक्षक पदस्थ होने और कुछ विद्यालयों में शिक्षकों के पद रिक्त पड़े होने के कारण शिक्षा के मूल उद्देश्यों को हासिल नहीं किया जा सक रहा है, वहीं आदिवासी इलाकों में करोड़ों रुपए खर्च करके जुटाई गईं पीने के पानी की बुनियादी सुविधा दम तोड़ चुकी है।
प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष श्री चंदेल ने बताया कि बिलासपुर जिले के चारों विकासखंडों के कुल 210 हायर सेकेंडरी और हाई स्कूलों में 1876 व्याख्याताओं के पद स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से 54 स्कूलों में स्वीकृत सेट-अप से 126 व्याख्याता ज्यादा हैं जबकि 80 स्कूलों में व्याख्याताओं के 174 पद अब तक खाली पड़े हैं।
तबादला उद्योग चलाने में मशगूल प्रदेश सरकार को इस बात से कोई सरोकार ही नहीं है कि यदि 126 अतिशेष व्याख्याताओं को उनके मूल विद्यालयों में भेजा जाए तो रिक्त पड़े 174 पदों की समस्या काफी हद तक हल हो सकती है।
चंदेल ने कहा कि राजनीतिक पहुँच और संरक्षण के चलते शहरी और मुख्य सड़क पर स्थित स्कूलों में स्वीकृत पदों से काफी अधिक शिक्षक पदस्थ हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित शालाओं में काफी पद रिक्त होने के कारण बच्चों की पढ़ाई पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
चंदेल ने कहा कि प्रदेश सरकार आत्मानंद स्कूलों के नाम पर ढोल पीटने में व्यस्त है और प्रदेशभर की स्कूलों की बदहाली से आँखें मूंदे बैठी है। जिन आत्मानंद स्कूलों का शोर मचाकर प्रदेश सरकार अपने मुँह मियाँ मिठ्ठू बन रही है, प्रदेश के अधिकांश उन आत्मानंद स्कूलों में अव्यवस्था की शिकायतें सामने आ रही हैं। ऐसे हालात में भी प्रदेश सरकार शिक्षा के नाम पर फर्जी दावे करके प्रदेश को बरगला रही है।
प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष श्री चंदेल ने कहा कि आदिवासियों के नाम पर प्रदेश सरकार सियासी ड्रामे तो खूब कर रही है, लेकिन आदिवासी इलाकों के स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में बुनियादी सुविधाएं तक मुहैया नहीं है।
सरगुजा संभाग के जशपुरनगर जिले के 2296 प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों और 1500 आंगनबाड़ी केंद्रों में बेहाली का आलम यह है कि वहाँ पीने के साफ पानी तक की व्यवस्था ही चरमरा चुकी है।
रनिंग वॉटर सप्लाई के नाम पर केवल स्कूलों पर 35 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी हालात ये हैं कि वहाँ बच्चे ढोंढ़ी का पानी पीने के लिए विवश हैं। श्री चंदेल ने कहा कि जिन स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में इस योजना के तहत काम हुए हैं,
उनमें से ज्यादातर स्कूलों और आंबा केंद्रों में नल से पानी की आपूर्ति ही नहीं हो रही है। जब यह नल लगाए गए थे तो वहाँ पुरानी व्यवस्था में स्थापित हैंडपंप निकाल दिए गए थे।
अब न नल से पानी मिल रहा है और हैंडपंप रहे नहीं, सो बच्चों को या तो ढोंढ़ी का पानी पीना पड़ रहा है या बस्ती के कुँओं पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
चंदेल ने कहा कि जो सरकार पढ़ने वाले बच्चों को पीने के पानी की बुनियादी सुविधा तक नहीं दे पा रही है, वह आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा के नाम पर झूठ बोलने में शर्म तक महसूस नहीं कर रही है।