रायपुर/15 अप्रैल 2024। प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर देश मे वंचित वर्गों को उनका अधिकार देने जातिगत जनगणना करवाई जाएगी। केंद्र की मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी जनगणना के जिम्मेदारी से लगातार भाग रही है। 2011 के बाद से देश में आम जनगणना नहीं हुआ है। जनगणना के आंकड़े अलग-अलग वर्गों के असलियत को प्रदर्शित करते है जिसके आधार पर सामाजिक न्याय के कार्यक्रम बनाये जाते है। जब जनगणना ही नहीं होगा तो वास्तविक स्थिति सामने कैसे आयेगी?
देश में जाति आधारित गिनती इसलिये ज़रूरी है –
1. सदियों से जाति व्यवस्था हमारे समाज की वास्तविकता है। इसमें जाति, जो कि जन्म से तय होती है, के आधार पर होने वाले भेदभाव और अन्याय को कोई नकार नहीं सकता।
2. लगभग दो सौ साल की ग़ुलामी के बाद आज़ाद हुए भारत के सामने कई चुनौतियां थीं। इसके चलते जाति आधारित गिनती सन 1951 से नहीं हुई। केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की गिनती हर जनगणना में नियमित रूप से होती रही है। पिछली जनगणना सन 2021 में होनी थी लेकिन मोदी सरकार ने लगातार इसको टाला है। इस कारण सरकार के पास अन्य जातियों को तो छोड़ ही दें एससी और एसटी की जनसंख्या कितनी है, इसकी भी जानकारी नहीं हैं। सन् 2011 में जब यूपीए की सरकार थी तब 25 करोड़ परिवारों को शामिल करते हुए सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना आयोजित की गई थी। जिसमें इन परिवारों का जातिय, सामाजिक और आर्थिक डेटा इकट्ठा किया गया था। सामाजिक-आर्थिक डेटा का उपयोग अब कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए किया जाता है लेकिन जाति से जुड़ी जानकारी और डेटा मोदी सरकार द्वारा कभी प्रकाशित ही नहीं किया गया।
3. पिछले तीन दशकों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य पिछड़े वर्ग, और सामान्य वर्ग के भी आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों को शिक्षा और सार्वजनिक क्षेत्र में रोज़गार में आरक्षण दिया जा चुका है। पर अभी भी हमें यह ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है कि वो कौन-कौन सा समुदाय हैं जो आरक्षित वर्गों में आते हैं और उनकी जनसंख्या तथा असली हालात क्या हैं? सामाजिक न्याय को पूरी तरह से तभी स्थापित किया जा सकता है जब हमें इन समुदायों की जनसंख्या स्पष्ट रूप से पता हो। इसी लिए जाति की गिनती ज़रूरी है। जाति जनगणना का और एक फ़ायदा है कि यह आरक्षित समूहों के बीच आरक्षण के लाभों का समान वितरण करने में भी काम आयेगा।
4. जाति जनगणना के साथ-साथ हमें यह जानना भी आवश्यक है कि आर्थिक विकास का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा है – हमारा अनुभव ये रहा है कि विकास का फ़ायदा कोई और उठा रहा है और क़ीमत कोई और चुका रहा है।
5. देश के सभी संसाधनों के न्यायपूर्ण बंटवारे के लिए सर्वे करके यह पता लगाना ज़रूरी है कि देश के संसाधनों और शासन चलाने वाली संस्थाओं पर आखिर किसका क़ब्ज़ा है। इसीलिए जाति जनगणना के साथ-साथ देश की संपत्ति और सरकारी संस्थाओं का सर्वे करना भी आवश्यक है ताकि हम समय-समय पर नए आंकड़ों के आधार पर सुधार करते रहें और प्रभावी नीतियों का निर्माण कर सामाजिक और आर्थिक न्याय के सपने को साकार किया जा सके।
प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि भारतीयज जनता पार्टी और केंद्र की मोदी सरकार की प्राथमिकता में केवल चंद पूंजीपति मित्र है। सामाजिक न्याय से भारतीय जनता पार्टी का कोई सरोकार नहीं है। भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस मूलतः अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और महिला विरोधी है, जातिगत जनगणना का विरोध करके भाजपाई अपने जनविरोधी षड़यंत्रों को ही प्रमाणित कर रहे है। जाति समूहों, राष्ट्रीय संपत्तियों और शासन प्रणालियों में हिस्सेदारी का यह सर्वेक्षण – जिसे सामूहिक रूप से एक व्यापक सामाजिक और आर्थिक जाति जनगणना कहा जाता है – के द्वारा ही हम एक ऐसा भारत सुनिश्चित कर सकते हैं जहां हर किसी को समान अवसर मिले।