Saturday, September 14, 2024
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कृष्ण जन्माष्टमी पर खास: मध्य प्रदेश के गिरोता गांव में है श्रीकृष्ण की एकमात्र मूंछ वाली प्रतिमा, जानिए इसकी अद्भुत कहानी

यत्नेश सेन, देपालपुर। Krishna Janmashtami 2024: पूरे देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाएगी। तमाम मंदिरों में सुबह से ही भक्तों की भीड़ रहेगी। इस बार जन्माष्टमी कई मायनों में खास होने जा रही है क्योंकि ठीक वैसे ही योग बन रहे हैं, जैसे द्वापर काल में श्री कृष्ण के जन्म के समय बने थे। इसलिए इस बार जन्माष्टमी को लेकर भक्तों में काफी उत्साह है। वहीं इस खास मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं मध्य प्रदेश स्थित ऐसे मंदिर में जहां पर श्रीकृष्ण की एकमात्र मूंछ वाली प्रतिमा विराजित है।

महाकाल की नगरी उज्जैन से 40 किलोमीटर की दूरी पर है जगह

आपको जानकर हैरान होगी कि देपालपुर के गिरोता गांव में मूंछ वाले अद्भुत और निराले कृष्ण की प्रतिमा मौजूद है। इंदौर से 80 किलोमीटर की दूरी और इंदौर जिले की आखिरी सीमा पर यह जगह है, जो महाकाल की धर्म नगरी उज्जैन से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। अति प्राचीन इस मूर्ति में भगवान श्री कृष्ण की मूंछ होने के कारण यह मूछों वाले कृष्ण के नाम से जाने जाते हैं। जहां लोग अद्भुत लीला धारी कृष्ण के दर्शन के लिए आते हैं।

प्राचीनकाल में लकड़ी का बना हुआ था मंदिर

जन्माष्टमी के दिन यहां पर मेला लगता है और दूर-दूर से श्रद्धालू कृष्ण के दर्शन करने आते हैं। मान्यताओ के चलते आज भी पूरा गांव मंदिर के नीचे से निकलता है। प्राचीनकाल में यह मंदिर लकड़ी का बना हुआ था। गांव के एक बुजुर्ग मोहन ने बताया कि समय के साथ साथ परिवर्तन होता गया। पहले यहां फाटक और ताले लगाए जाते थे। जिससे गाव में चोर और जानवर ना घुस पाए।

बरसात न होने पर ग्रामीण करते हैं हरे कृष्ण-हरे राम का कीर्तन

ग्रामीणों ने बताया कि जब जब कोई अनहोनी होने की सम्भावना रहती है और जब भी बरसात नहीं होती, तो ग्रामीण हरे कृष्ण-हरे राम का कीर्तन करते हैं। जिससे भगवान इनकी भाव भरी  पुकार सुनकर वर्षा रूपी  प्रेम बरसाते हैं। ग्रामीणों के अनुसार इस मंदिर का इतिहास काफी वर्षों पुराना है।

गांव में आग लगने के बाद भी मंदिर को नहीं हुआ नुकसान

बताया जाता है कि कई सालों पहले गांव में भीषण आग लग गई थी। जिस कारण सारे घर जलकर राख हो गए थे। लेकिन एक यही मंदिर सुरक्षित बचा रहा, जैसा आज है। आस-पास गंभीर नदी होने के कारण यह एक मात्र ही रास्ता रह जाता है जहां सभी राहगीरों /मुसाफिरों को इसी के नीचे से होकर निकलना पड़ता है।

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