Tuesday, April 22, 2025
HomeरायपुरCG NEWS : चिकित्सा शिक्षा विभाग में हर चौथे महीने बदल...

CG NEWS : चिकित्सा शिक्षा विभाग में हर चौथे महीने बदल रहा कमिश्नर! 27 महीने में 7 अधिकारी बदले, विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल

रायपुर। छत्तीसगढ़ के चिकित्सा शिक्षा विभाग में स्थायित्व का संकट गहराता जा रहा है। पिछले 27 महीनों में 7 बार कमिश्नर बदले गए, जिससे स्पष्ट हो गया है कि इस विभाग की बागडोर लगातार अस्थिर हाथों में रही है। औसत निकालें तो हर चार महीने में एक नया कमिश्नर पदस्थ किया गया, जिससे विभागीय कार्यप्रणाली पर सीधा असर पड़ा है।

27 माह में 7 कमिश्नर, सिस्टम की स्थिरता पर बड़ा सवाल

जनवरी 2023 में विभाग की कार्यप्रणाली में कसावट लाने और मॉनिटरिंग मजबूत करने के उद्देश्य से “कमिश्नर” पद का सृजन किया गया था। लेकिन इसके बाद से जो हुआ, उसने सवाल खड़े कर दिए। अब तक नम्रता गांधी, अब्दुल कैसर हक, जयप्रकाश मौर्य, चंद्रकांत वर्मा (प्रभारी), जेपी पाठक, किरण कौशल और अब शिखा राजपूत तिवारी को कमिश्नर की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

सबसे लंबा कार्यकाल सिर्फ 9 महीने का

  • नवीनतम नियुक्ति: शिखा राजपूत तिवारी (अप्रैल 2025)

  • पूर्व कमिश्नर किरण कौशल: अगस्त 2024 से अप्रैल 2025 (लगभग 9 माह)

  • जेपी पाठक: जनवरी 2024 से अगस्त 2024

  • इससे पहले के अधिकारियों का कार्यकाल और भी छोटा रहा। इस बदलाव की रफ्तार ने विभाग को एक तरह से ‘ट्रांजिट कैम्प’ बना दिया है।

नॉन-मेडिको अधिकारियों के लिए चुनौती बना विभाग

जानकारों का कहना है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग में नेशनल मेडिकल कमीशन, डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया और इंडियन नर्सिंग काउंसिल के नियम इतने जटिल हैं कि मेडिकल पृष्ठभूमि नहीं रखने वाले आईएएस अधिकारियों के लिए उन्हें समझना और लागू करना बेहद कठिन होता है। यही कारण है कि कई अधिकारी इस विभाग को ‘लूपलाइन’ की तरह मानते हैं और स्थानांतरण की जुगत में रहते हैं।

डीएमई से ऊपर कमिश्नर? हाईकोर्ट तक पहुंचा मामला

जनवरी 2023 के पहले तक विभाग में हेल्थ कमिश्नर और हेल्थ सेक्रेटरी डीएमई से ऊपर होते थे। लेकिन नए कमिश्नर पद के सृजन के साथ डीएमई के अधिकांश अधिकार कमिश्नर को सौंप दिए गए, जिससे विवाद खड़ा हो गया।

रिटायर्ड डीएमई डॉ. विष्णु दत्त ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने कहा कि

“चिकित्सा शिक्षा विभाग के मौजूदा सेटअप में ‘कमिश्नर’ का कोई पद नहीं है। ऐसे में डीएमई के अधिकारों को कमिश्नर को देना नियमों के खिलाफ है।”
हालांकि, यह मामला बाद में कानूनी रूप से आगे नहीं बढ़ सका क्योंकि अधिवक्ता ने केस से खुद को अलग कर लिया।

मेडिकल टीचर एसोसिएशन की निष्क्रियता पर सवाल

इस मामले में मेडिकल टीचर एसोसिएशन (MTA) की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। उन्होंने शुरुआत में स्वास्थ्य मंत्री से मुलाकात जरूर की, लेकिन इसके बाद वे लगभग निष्क्रिय हो गए। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुद्दा विभागीय स्वायत्तता और कार्यप्रणाली की पारदर्शिता से जुड़ा है, जिस पर सशक्त रुख अपनाने की जरूरत है।

कमिश्नर पद की कहानी – एक नाराजगी का नतीजा?

सूत्रों का कहना है कि यह पद एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की “नाराजगी” का परिणाम था, जिन्हें संतुष्ट करने के लिए यह नया पद सृजित किया गया। वे अब प्रतिनियुक्ति पर चले गए हैं, लेकिन उनके बाद शुरू हुआ अस्थिरता का यह सिलसिला अब तक थमा नहीं है।

निष्कर्ष: स्थायित्व के बिना कैसे सुधरेगा विभागीय कामकाज?

प्रदेश में लगातार नए मेडिकल और नर्सिंग कॉलेजों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में सबसे अहम बात यह है कि चिकित्सा शिक्षा जैसे गंभीर और तकनीकी विभाग में निरंतरता और विशेषज्ञता की ज़रूरत है। बार-बार कमिश्नर बदलने से फैसले अधूरे रह जाते हैं और नीतियाँ अधर में लटक जाती हैं।

सरकार को अब यह तय करना होगा कि क्या विभागीय सुदृढ़ता के लिए अनुभव और स्थायित्व को प्राथमिकता दी जाएगी या यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा?

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular